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परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 3- राजवंशजों का राज)Sample
राजकीय बुद्धि – नीतिवचन,सभोपदेशक
राजा सुलैमान, पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान माना जाने वाला राजा अपनी बुद्धि की यात्रा को साझा करता है। इस यात्रा में उसकी कहावतें और इस युग उत्तम बुद्धि की बातें शामिल हैं। हांलांकि उसकी चाहत, अपनी सफलताओं से ज्यादा अपनी अपनी असफलताओं पर चिन्तन करना है क्योंकि वह पाता है कि उसकी सांसारिक बुद्धि और उसके परिणामों से उसे आत्मिक बुद्धि की प्राप्ति होती है।
युगों से विश्वासी लोग सांसारिक बुद्धि के साथ आत्मिक बुद्धि के समायोजन करने की चुनौति का पोषण करने में संघर्ष कर रहे हैं।
सभोपदेशक की पुस्तक में वह अपनी गलतियों को स्वीकार करता है और जीवन के सन्दर्भ में सुधरे हुए नज़रिये को प्रस्तुत करता है। नीतिवचन और सभोपदेश की कहानी का आधार राजा सुलैमान के जीवन पर चिन्तन करना है।
बुद्धि (स्त्री) की पुकार
सुलैमान बुद्धि का मानवीयकरण करके अर्थात उसे एक स्त्री के रूप में दर्शाता है, जो लोगों को बुलाती है (नीतिवचन 1,8)। जब सुलैमान के सामने चुनाव रखा गया तबसुलैमान स्वयं इस बुलाहट का जवाब देता(1 राजा 3)और परमेश्वर से बुद्धि मांगता है।
अन्य मार्ग इशारा करके बुलाते हैं
सुलैमान बार बार दुष्टों के मार्गों व व्यभिचार के खतरे से बचने के लिए चेतावनी देता है। यह वह फंदा है जिसमें वह बुरी तरह से फंस गया था (1 राजा 11:1-3)। वह परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़कर हद से ज्यादा विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लेता है- अर्थात उसकी 700पत्नियां और 300 दासियां हो जाती है। राजा के दृष्टिकोण से अगर देखें तो पड़ोसी देशों से रिश्ता बनाने से उसका अभिप्राय यह था कि,इससे कुछ समय के लिए देश में शान्ति और समृद्धि आयी।
अन्य स्त्रियों से अन्य देवताओं तक
जब सुलैमान बूढ़ा हुआ,तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया,और उसका मन अपने पिता के समान अपने परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा (1राजा 11:4-6)।
जब बुद्धिमानी मूर्खता बन जाती है
स्वयं सुलैमान इस बात को मानता है कि गलत तरीके की बुद्धि को प्राप्त करना व्यर्थ है। ” सभोपदेशक 1:17 मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूँ और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूँ। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है। क्योंकि बहुत बुद्धि के साथ बहुत खेद भी होता है,और जो अपना ज्ञान बढ़ाता है वह अपना दुःख भी बढ़ाता है।
किस प्रकार अति बुद्धिमान राजा असफल हो गए
राजा सुलैमान लगातार इस वाक्य “परमेश्वर का भय” को दोहराते हुए कहता है कि यह बुद्धि का प्रमुख धटक है। हालांकि उसे परमेश्वर की ओर से संासारिक बुद्धि प्रदान की गयी थी, लेकिन परमेश्वर से धीरे धीरे दूर होने के कारण वह वास्तविक बुद्धि से वंचित रह गया। और जब तक उसे यह बात समझ में आती तक तक उसके राज्य को बचाने में देरी हो चुकी थी जो कि उसकी मृत्यु के बाद बंट गया।
क्या हमारे पास इस बेमायने संसार को कुछ मायना प्रदान करने के लिए पर्याप्त बुद्धि है? क्या आत्मिक बुद्धि हमारी प्रथम प्राथमिकता है?क्या हमने इस संसार के मामलों में चतुराई सीखने के साथ साथ अपने आत्मिक नज़रिये के पोषण करने को सन्तुलित किया है?
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वे समुद्र के बीच में से होकर गुज़रे, बादल के खम्बे और आग के खम्बे ने उनकी अगुवाई की, उन्होंने शहरपनाहों को तोड़ डाला और शक्शिाली शत्रुओं को हराया। इसके बावज़ूद भी इस्राएल एक राजा की मांग करता है,वह परमेश्वर की अवज्ञा करता ह...
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