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परमेश्वर के संपर्क - पुराने नियम की एक यात्रा (भाग 1 पुराने नियम का सार, कुलपतियों के काल )Sample

परमेश्वर के संपर्क - पुराने नियम की एक यात्रा (भाग 1 पुराने नियम का सार, कुलपतियों के काल )

DAY 9 OF 14

यूसुफ – अडिग विश्वास यूसुफ की मार्मिक कहानी अति प्रेरणादायक है, क्योंकि वह अपने पिता के दुलारे पुत्र से दुनिया केदूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में परिवर्तित हुआ । उसका अडिगविश्वास उसे गड्ढे, पोतीपर की गुलामी, बेबुनियाद आरोपों के तहत बंदीगृह की कैदइत्यादि से निकालता है। 1\. दुलारा – निश्चित तौर पर अपने माता-पिता का प्रिययूसुफ, याकूब की प्रिय राहेल का पहला पुत्र था, जिसे उसके पिता के द्वारा पहिलौठे का अधिकार दिया गया था। 11वां बच्चा होने के बावजूद यह उसके विशेष लम्बी बाजू वाले बागे के द्वारा प्रत्यक्ष प्रगट है । ऐसा माना जाता है कि वह अपने जन्मदिन के पारंपरिक वार्षिक अवसर के बजाय इसे दैनिक रूप से पहनता था{1} जिसके कारण उसके भाईयों के मन में उसके द्वारा साझा किए गए अगुवाई करने के सपनों से बढ़ कर,जलन उत्त्पन्न होती थी। 2\. गड्ढा - एक मौके पर वे उस पर दया करने की उसकी विनतियों को अनदेखा करते हुए उसे एक गड्ढे में फेंक देते हैं। मृत्यु से बचाए जाने के बाद अंततः उसे गुलाम व्यापरियों को बेच दिया जाता है। उसके परिजन उसे मरा हुआ मान लेते हैं। लेकिनजो खेल का अंत प्रतीत हो रहा था, वही उसकी कीर्ति का उदय साबित होता है। 3\. पोतीपर का घर - पोतीपर को बेच दिया गया, रक्षकों के कप्तान के रूप में, वह उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ अपने कर्तव्यों को जल्दी से स्वीकार करता है। परमेश्वर के द्वारा आशीषित, वह सभी सेवकों के मुखिया के पद पर आसीन हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि हर साल मिस्र में सबसे खूबसूरत महिला को आइसिस के रूप में चुना जाता था और उसे एक बच्चे को पाने के लिए किसी भी पुरूष को एक चुनिंदा समय के लिए अपने ओसिरिस के रूप में चुनना होता था । एक साल पोतीपर की पत्नी को आइसिस के रूप में चुना जाता है और वह यूसुफ को अपने ओसिरिस के रूप में चुनती है। यूसुफ बिना बताए कहीं चला जाता है। काम पर लौटने के बाद पोतीपर की पत्नी उसे लुभाती है, क्योंकि वह उस बच्चे को पाने के लिए बेताब थी जिसे मिस्र ढूंढ रहा था। यूसुफ ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया, लेकिन उसे बहकाने के लिए दोषी ठहराया गया, और अंततः यूसुफ को जेल में डाल दिया गया । कम उम्र में अकेले मिस्र की संस्कृति में फेंके जाने के बावजूद, यूसुफ अपने विश्वास, अपने सिद्धांतों और परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को मजबूती से थामे रहता है। ·बंदीगृह– पोतीपर,राजाओं के अंगरक्षकों का प्रधान होने के नाते बंदीगृहभी चलाता था और वहाँ पर भी वह यूसुफ पर अनुग्रह करता है। सम्भवतः वह यूसुफ के पक्ष को जानता और उसका सम्मान करता था, भले ही उसे शुरू में गुमराह किया गया हो। कई सालों के लिए उसे दुर्बल होने के लिए छोड़ दिया गया, बंदीगृह से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका मृत्यु या फिर स्वयं फिरौन की क्षमा थी। परमेश्वर के समय में, फिरौन ने स्वप्न देखे जिनका अर्थ केवल यूसुफ ही बता सकता था। वह बंदीगृह से यूसुफ को बुलाता है। यूसुफ़ नहीं जानता था कि उसे क्यों बुलाया गया है। हर साल वह एक व्यक्ति को सजा धजा के बलि के रूप में चढ़ाने के लिए भेजता था । इस साल वह स्वयं जा रहा था। 4\. महल - महल में वह फिरौन के सपने का अर्थ बताता है और फिरौन पहिचान जाता है कि कि उसके पास परमेश्वर का आत्मा है। अचानक से वह फिरौन के बाद दूसरा सबसे सामर्थी व्यक्ति बन जाता है। इस उथल-पुथल ने उसे यह स्वीकार करने में सक्षम बनाया कि परमेश्वर निम्न बातों में उसकी सहायता करते हैं: * उसकी भूतकाल की परेशानियों को भूलने में (उत्पत्ति 41:51) * दुःखों के देश में फलवंत होने में (उत्पत्ति 41:52). * उसके भाईयों द्वारा अतीतमें दिए गये गहरे दुःखों को क्षमा करने में (उत्पत्ति 50:20) जबकि परमेश्वर ने यूसुफ को कड़ी परीक्षा के माध्यम से परखा, यह वाक्य ‘‘ परमेश्वरयूसुफकेसाथथा ’’ पूरी कहानी में सुनाई देता है - पोतीपर के घर में (उत्पत्ति 39:2), जेल में (उत्पत्ति 39:21,23) और महल में (उत्पत्ति 41:38.39)। यही उसकी सफलता का राज था। क्या हम इतने धीरजवंत हैं कि अकेलेपन, अस्वीकृति और निराशा के माध्यम से परमेश्वर को हमारे जीवन में अपने उद्देश्यों को पूरा करने की अनुमति दे सकें? क्या आसपास के लोग हमारे जीवन पर परमेश्वर के हाथ और हमारे अन्दर परमेश्वर के आत्मा को स्वीकार करते हैं?
Day 8Day 10

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परमेश्वर के संपर्क - पुराने नियम की एक यात्रा (भाग 1 पुराने नियम का सार, कुलपतियों के काल )

पुराने नियम में, परमेश्वर ने लोगों (संपर्क) को चुना, उनके साथ अनेकों तरीकों से बातचीत की।यह, नए नियम के प्रकाश में, वचन के गहरे दृष्टिकोण को प्रदान करता है। परमेश्वर के संपर्को के चार भाग हैं, जिसमे पहला भाग पुराने नियम...

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