YouVersion Logo
Search Icon

Plan info

जीतने वाली प्रवृति Sample

जीतने वाली प्रवृति

DAY 8 OF 8

जीतने वाली प्रवृत्ति 8 - सताव में आनन्दित मत्ती 5:10-12 "धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निदा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिए स्वर्ग में बड़ा फल है, इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।" यहां पर परीक्षण होता है। ज्यादातर जीतने वाली प्रवृत्तियां अत्यधिक गहन होती हैं , और असली व नकली में फर्क करना मुश्किल पड़ जाता है। तो फिर हमें पता कैसे चलता है कि हमारे भीतर असली प्रवृतियां हैं? यह प्रवृति एक आधार होता है। जब हम दूसरों की भलाई करते, दूसरों की सहायता करते, वास्तव में त्याग भावना के साथ अपनी त्यागपूर्ण सेवाओं को देते हैं लेकिन फिर भी हमें विरोध का सामना करना पड़े, तब हमारी प्रतिक्रिया कैसी होती है। हम अधिकतर चोटों और दोष भावना में फंसकर रह जाते हैं। खास तौर पर तब जब हमारे नज़दीकी लोग हमारी निन्दा करते हैं, तो हमें गहरी चोट पहुंचती है। चोटों का लगना तो अवश्य है, लेकिन यदि यीशु स्वयं "निन्दाओं के बावजूद" भलाई कर सकते हैं, तो हम भी कर सकते हैं। यदि पौलुस उसे चोट पहुंचाने वालों तक पहुंचकर उन्हें परिवर्तित कर सकता था तो वह हमारा भी अधिकार है। क्या हम उन ज़ख्मों की यादों को रौंदकर, उनसे ऊपर उठकर सच्ची ज्योति बन पा रहे हैं? हम केवल अपनी निन्दाओं को नज़रअन्दाज करना ही नहीं सीखते हैं, वरन यीशु हमें उस निशान से ऊपर उठा लेते हैं। हमें आनन्दित और लगातार आनन्दित रहना है, जिस प्रकार से पौलूस ने एक प्रेरित के रूप में, और जैसे यीशु ने स्वयं आनन्द किया। वे ऐसा कैसे कर पाए? सिर्फ वचन के अनुसार चलकर और आंख बन्द करके मसीह व उसकी बुलाहट को मानकर। अपने आप के लिए मरके तथा उसके लिए जीवित होकर। तब ही, केवल तब ही हम क्लेशों के बीच में भी गहन आनन्द और मसीह की शान्ति का अनुभव कर सकते हैं जिसने बड़ी कृपा, उत्तम तरीके, आत्म विश्वास के साथ सर्वाधिक कठिन पथ को पार किया। सुनीता नाम एक महिला ने, एक घटना के बारे में बताते हुए कहा कि एक बार एक पुरूष ने उसकी बेईज्जती की और उसे एक चांटा मार दिया, वह उस समय नयी नयी विश्वास में आयी थी। उसने कहा, कि उसे उसकी इस हरकत पर गुस्सा नहीं आया, वरन उसे अपने भीतर गहन शान्ति और आनन्द महसूस हुआ। उसने महसूस किया कि वह व्यक्ति बहुत ज्यादा परेशान था, लेकिन इस महिला ने मन में उसके विरूद्ध कोई भावना नहीं आयी। बहुत वर्षों के बाद उस महिला को गले लगाया और मसीह में उसका अभिनन्द किया। ज्यादातर मामलों में एक मसीही होने के नाते भलाई करने से कोई सताव नहीं होता। 1पतरस 3:13 "यदि तुम भलाई करने में उत्तेजित रहो तो तुम्हारी बुराई करने वाला फिर कौन है? और यदि तुम धर्म के कारण दुःख भी उठाओ, तो धन्य हो।" उसके बाद पतरस हमें "नम्रता" और "भय" के साथ अपने विश्वास की रखवाली करने की याद दिलाता है। आनन्दित होने का कारण यह है कि हम जानते हैं कि न केवल हमारा प्राण सशक्त और सुरक्षित हो रहा है वरन हर परिस्थिति में विकसित और सम्पन्न हो रहा है। हम अपने प्राणों को सृष्टिकर्ता के हाथों में सौंपते हैं। जब हमें उन लोगों के द्वारा जख्म मिलते हैं जिनकी हम ने सहायता की होती हैं तो हमें अन्तरआत्मा में कैसा महसूस होता है? क्या हम वास्तव में सब भूलकर परमेश्वर के हाथों में सौंप देते हैं? क्या हम आनन्दित होते हैं और हर परिस्थिति में आनन्दित हो सकते हैं? अगर नहीं, तो हम ऐसा ही करने का प्रयास कर सकते हैं। There is an audio attachment for this devotional. You can [ download the audio ](https://plan-audio-cdn.youversionapi.com/uploads/supplemental-audio/d448818f-142c-41eb-9431-9031d5159a0e.mp3) if you wish.
Day 7

About this Plan

जीतने वाली प्रवृति

खुशी क्या है? सफलता? भौतिक लाभ? एक संयोग? ये मात्र अनुभूतियां हैं। प्रायः खुशी के प्रति अनुभूति होते ही वह दूर चली जाती है। यीशु सच्ची व गहरी खुशी व आशीष को परिभाषित करते हैं। वह बताते हैं कि आशीष निराश नहीं वरन जीवन रूप...

More

YouVersion uses cookies to personalize your experience. By using our website, you accept our use of cookies as described in our Privacy Policy