याकूब 1

1
अभिवादन
1यह पत्र परमेश्‍वर और प्रभु येशु मसीह के सेवक याकूब की ओर से है। संसार भर में बिखरे हुए बारह कुलों को नमस्‍कार!#1 पत 1:1; प्रे 15:23
विश्‍वास और विपत्ति
2मेरे भाइयो और बहिनो! जब आप पर अनेक प्रकार की विपत्तियाँ आएं, तब इसे बड़े आनन्‍द की बात समझिए।#रोम 5:3-5; 1 पत 1:6; मत 5:12; प्रज्ञ 3:5-6 3आप जानते हैं कि आपके विश्‍वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्‍पन्न करता है।#1 पत 1:7 4धैर्य को कार्यान्‍वयन की पूर्णता तक पहुँचने दीजिए, जिससे आप लोग स्‍वयं पूर्ण तथा सिद्ध बन जायें और आप में किसी बात की कमी नहीं रहे।
5यदि आप लोगों में से किसी में बुद्धि का अभाव हो, तो वह परमेश्‍वर से प्रार्थना करे और उसे बुद्धि मिलेगी; क्‍योंकि परमेश्‍वर खुले हाथ और खुशी से सब को देता है।#नीति 2:3-6; प्रज्ञ 8:21; प्रव 51:13-14 6किन्‍तु उसे विश्‍वास के साथ और सन्‍देह किये बिना प्रार्थना करनी चाहिए; क्‍योंकि जो सन्‍देह करता है, वह समुद्र की लहरों के सदृश है, जो हवा से इधर-उधर उछाली जाती हैं।#मक 11:24 7ऐसा व्यक्‍ति यह न समझे कि उसे प्रभु की ओर से कुछ मिलेगा; 8क्‍योंकि ऐसा मनुष्‍य दुचिता है और उसका सारा आचरण अस्‍थिर है।
दरिद्रता और सम्‍पन्नता
9जो भाई अथवा बहिन#1:9 मूल में, “भाई”। दरिद्र है, वह परमेश्‍वर द्वारा प्रदत्त अपनी श्रेष्‍ठता पर गौरव करे।#याक 2:5 10जो धनी है, वह अपनी हीनता पर गौरव करे; क्‍योंकि वह घास के फूल की तरह नष्‍ट हो जायेगा।#भज 102:4,11; 1 पत 1:24 11जब सूर्य उगता है और लू चलने लगती है, तो घास मुरझाती है, फूल झड़ता है और उसकी कान्‍ति नष्‍ट हो जाती है। इसी तरह धनी और उसका पूरा व्‍यापार समाप्‍त हो जायेगा।#यश 40:6-7 (यू. पाठ)
परीक्षा और प्रलोभन
12धन्‍य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है! परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्‍त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्‍तों को देने की प्रतिज्ञा की है।#दान 12:12; 2 तिम 4:8; 1 पत 5:4; 1 कुर 9:25 13प्रलोभन में पड़ा हुआ कोई भी व्यक्‍ति यह न कहे कि परमेश्‍वर मुझे प्रलोभन देता है। परमेश्‍वर न तो बुराई के प्रलोभन में पड़ सकता और न किसी को प्रलोभन देता है।#प्रव 15:11-20; प्रक 2:10 14जो प्रलोभन में पड़ता है, वह अपनी ही वासना द्वारा खींचा और बहकाया जाता है।#रोम 7:7-10 15वासना के गर्भ से पाप का जन्‍म होता है और पाप विकसित हो कर मृत्‍यु को जन्‍म देता है।
16मेरे प्रिय भाइयो और बहिनो! आप गलती न करें। 17सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्‍टिकर्ता पिता के यहाँ से उतरते हैं, जिस में न तो कोई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्‍धकार।#1 यो 1:5; मत 7:11 18उसने अपनी ही इच्‍छा से सत्‍य के वचन द्वारा हम को जीवन प्रदान किया है, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्‍टि के प्रथम फल बनें।#यो 1:13; 1 पत 1:23
वचन के श्रोता ही नहीं, बल्‍कि उसके पालनकर्ता भी बनें
19मेरे प्रिय भाइयो और बहिनो! आप यह अच्‍छी तरह समझ लें। प्रत्‍येक व्यक्‍ति सुनने के लिए तत्‍पर रहे, किन्‍तु बोलने और क्रोध करने में देर करे;#प्रव 5:11 20क्‍योंकि मनुष्‍य का क्रोध उस धार्मिकता में सहायक नहीं होता, जिसे परमेश्‍वर चाहता है।#इफ 4:26 21इसलिए आप लोग हर प्रकार की मलिनता और समस्‍त बुराई को दूर कर नम्रतापूर्वक परमेश्‍वर का वह वचन ग्रहण करें, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्‍मा का उद्धार करने में समर्थ है।#कुल 3:8; 1 पत 2:1 22आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्‍कि उसके पालनकर्ता भी बनें।#मत 7:26; रोम 2:13 23जो व्यक्‍ति वचन सुनता है, किन्‍तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह उस मनुष्‍य के सदृश है जो दर्पण में अपना प्राकृतिक चेहरा देखता है। 24वह अपने को देख कर चला जाता है और उसे याद नहीं रहता कि उसका अपना स्‍वरूप कैसा है। 25किन्‍तु जो व्यक्‍ति उस व्‍यवस्‍था को, जो पूर्ण है और हमें स्‍वतन्‍त्रता प्रदान करती है, ध्‍यान से देखता और उसका पालन करता रहता है, वह उस श्रोता के सदृश नहीं, जो तुरन्‍त भूल जाता है, बल्‍कि वह कर्ता बन जाता और उस व्‍यवस्‍था को अपने जीवन में चरितार्थ करता है। वह अपने आचरण के कारण धन्‍य होगा।#याक 2:12; रोम 8:2; यो 13:17
26यदि कोई अपने को धर्मात्‍मा मानता है, किन्‍तु अपनी जीभ पर नियन्‍त्रण नहीं रखता, तो वह अपने आप को धोखा देता है और उसका धर्माचरण व्‍यर्थ है।#भज 34:13 27पिता परमेश्‍वर की दृष्‍टि में शुद्ध और निर्मल धर्म यह है : विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।

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