भजन संहिता 84:1-12

भजन संहिता 84:1-12 HINOVBSI

हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! मेरा प्राण यहोवा के आँगनों की अभिलाषा करते करते मूर्च्छित हो चला; मेरा तन मन दोनों जीवते परमेश्‍वर को पुकार रहे। हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा और मेरे परमेश्‍वर, तेरी वेदियों में गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिसमें वह अपने बच्‍चे रखे। क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे। (सेला) क्या ही धन्य है वह मनुष्य, जो तुझ से शक्‍ति पाता है, और वे जिनको सिय्योन की सड़क की सुधि रहती है। वे रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतों का स्थान बनाते हैं, फिर बरसात की अगली वृष्‍टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। वे बल पर बल पाते जाते हैं; उनमें से हर एक जन सिय्योन में परमेश्‍वर को अपना मुँह दिखाएगा। हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्‍वर, कान लगा! (सेला) हे परमेश्‍वर, हे हमारी ढाल, दृष्‍टि कर; और अपने अभिषिक्‍त का मुख देख! क्योंकि तेरे आँगनों में का एक दिन और कहीं के हज़ार दिन से उत्तम है। दुष्‍टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्‍वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं, उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा। हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य है वह मनुष्य, जो तुझ पर भरोसा रखता है!

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